प्रधानपति पर लगाया दस हजार रुपये का जुर्माना
अजीत पार्थ न्यूज
उच्च न्यायालय इलाहाबाद नें एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि गांव में ज्यादातर महिला प्रधान रबड़ स्टाम्प की तरह काम करती हैं, उनका काम उनके पति अथवा पुत्र करते हैं। न्यायालय नें कहा कि पतियों का महिला प्रधान के काम में हस्तक्षेप करना गलत है और यह राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण के उद्देश्य को कमजोर करता है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक टिप्पणी से उत्तर प्रदेश के 31212 प्रधानों पर आया संकट
उच्च न्यायालय इलाहाबाद नें उत्तर प्रदेश की महिला प्रधानों के पतियों की ओर से उनके प्रतिनिधि के रूप में काम करने को लेकर तल्ख टिप्पणी की है। न्यायालय नें इसकी आलोचना करते हुए कहा कि महिला प्रधानों के काम में पतियों का इस तरह का हस्तक्षेप राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण के उद्देश्य को कमजोर करता है। हाई कोर्ट नें प्रधानपति यानी एक महिला ग्राम प्रधान के पति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की थी।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौरभ श्याम शमशेरी नें पति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि महिला ग्राम प्रधान के पति के पास गांव के कामकाज में हस्तक्षेप करने की कोई व्यवसाय नहीं है। ‘प्रधानपति’ शब्द उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय है, इसका इस्तेमाल एक महिला प्रधान के पति के लिए किया जाता है। न्यायालय नें कहा कि एक अधिकृत प्राधिकारी होने के बावजूद भी ‘प्रधानपति’ अनाधिकृत रूप से महिला प्रधान का काम करता है, मतलब वह अपनी पत्नी का काम करता है।
‘महिला प्रधान केवल रबड़ स्टांप’
न्यायालय नें कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जहां एक महिला प्रधान केवल रबड़ स्टांप की तरह काम करती है, उसके सारे काम एवं प्रमुख निर्णय उसका पति यानी ‘प्रधानपति’ करता है और जिन्हें जनता ने चुना है वह महज मूकदर्शक की तरह रहते हैं, न्यायालय नें कहा कि वर्तमान याचिका ऐसी ही स्थिति का जीता जागता उदाहरण हैं। उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी से उत्तर प्रदेश के 31212 ‘प्रधानों’ पर संकट आ सकता है।
हलफनामे में महिला प्रधान के पति नें ली थी शपथ
दरअसल यह रिट याचिका बिजनौर जिले की नगीना तहसील के मदपुरी गांव की एक प्रधान कर्मजीत कौर के जरिए से दायर की गई थी। रिट याचिका के साथ निर्वाचित प्रधान द्वारा अपने पति को यह रिट याचिका दायर करने के लिए अधिकृत करने के पक्ष में कोई प्रस्ताव नहीं था, लेकिन याचिका के साथ हलफनामे में कौर के पति सुखदेव सिंह ने शपथ ली थी।
‘पति को काम में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं’
इस रिट याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय नें कहा कि प्रधान होने के नाते याचिकाकर्ता के पास अपने निर्वाचित पद मिले अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों को अपने पति या किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने का कोई प्राविधान नहीं है। प्रधानपति को गांव के कामकाज के मामले में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय नें कहा कि अगर ऐसा होता है तो न सिर्फ महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को विफल कर देगा, बल्कि महिलाओं को दिए जाने वाले विशिष्ट आरक्षण प्रदान करने में भी आपत्ति होगी
उच्च न्यायालय नें अपने आदेश में कहा कि संबंधित प्रधान पति 10000 रुपये जुर्माना के रूप में अतिशीघ्र जमा करे। साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि नामांकन पत्र भरते समय महिलाओं से इस आशय का शपथ पत्र लिया जाए कि, वह अपना कार्य स्वयं करेंगी तथा उनके निर्वाचित पद के उत्तरदायित्व का निर्वहन उनके पति अथवा पुत्र नहीं करेंगे।