* भगवान श्री कृष्ण का साहित्यिक अवतार है “श्रीमद् भागवत” महापुराण: विजय राघव
* भक्ति ज्ञान और वैराग्य की लोगों ने सुनी कथा
अजीत पार्थ न्यूज संवाददाता धनघटा संत कबीर नगर
श्रीमद् भागवत पुराण को भगवान कृष्ण का साहित्यिक अवतार माना जाता है। श्रीमद् भागवत कथा सुनने से आध्यात्मिक विकास और भगवान के प्रति भक्ति गहरी हो जाती है। श्रीमद् भागवत कथा स्वयं की प्रकृति और परम वास्तविकता के बारे में सिखाती है। उक्त बातें अवध धाम से आए पंडित विजय राघव दास जी महाराज ने तिलकूपुर में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के पहले दिन रविवार को श्रोताओं को सुनाई।
कथा प्रसंग को आगे बढ़ते हुए पंडित विजय राघव दास जी ने कहा कि श्रृंगी अपने पिता ऋषि शमीक के आश्रम में अन्य ऋषिकुमारों के साथ रहकर अध्ययन कर रहे थे। सभी विद्यार्थी जंगल गए हुए थे और आश्रम में शमीक ऋषि समाधि में अकेले बैठे हुए थे। तभी अचानक वहां प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित पहुंचे। वह प्यास से बहुत व्याकुल थे और आश्रम में पानी खोजने लगे। जब उन्हें कहीं से पानी नहीं मिला तो उन्होंने समाधि में बैठे शमीक ऋषि को प्रणाम कर विनम्रता से कहा- मुझे प्यास लगी है। कृपा करके मुझे पानी दीजिए।
राजा ने मरा सांप ऋषि के गले में डाला
कथावाचक ने बताया कि राजा के बार बार कहने पर भी ऋषि का कोई जवाब नहीं मिला। क्रोध में आकर राजा परीक्षित ने एक मरा सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। उन्हें आश्रम से जाते हुए एक ऋषि कुमार ने देख लिया और जाकर श्रृंगी को इसके बारे में बताया। जब तक सब पहुंचे,राजा वहां से जा चुके थे।ध्यान में बैठे शमीक ऋषि के गले में मरा सांप पड़ा था। यह देखकर ऋषि श्रृंगी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने हाथ में पानी लेकर परीक्षित को श्राप दे दिया कि मेरे पिता का अपमान करने वाले राजा परीक्षित की मृत्यु आज से सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से होगी। शमीक की समाधि टूट गई। शमीक ऋषि ने पूछा क्या बात है? तब श्रृंगी ने सारी बात बताई। शमीक बोले राजा परीक्षित के साधारण अपराध के लिए तुमने जो सर्पदंश से मृत्यु का भयंकर शाप दिया है,यह बहुत बुरा है। हमें यह शोभा नहीं देता। राजा परीक्षित को राजभवन पहुंचते-पहुंचते अपनी गलती का अहसास हो चुका था। थोड़ी देर बाद शमीक ऋषि का एक शिष्य राजा परीक्षित के पास पहुंचा और उसने कहा राजन आपने बिना सोचे-समझे जो मरे सांप को उनके गले में डाल दिया। इस कारण उनके पुत्र श्रृंगी ने आपको आज से सातवें दिन सांप काटने से मृत्यु का शाप दे दिया है,जो असत्य नहीं होगा।
सात दिन भागवत कथा सुनाई
इसलिए आप मेरी बात मानें तो सात दिन तक अपना पूरा समय ईश्वर-चिंतन में लगाएं, ताकि आपको मोक्ष मिल सके. ये सुनकर राजा को संतोष हुआ कि मेरे द्वारा हुए अपराध के लिए मुझे उचित दंड मिलेगा। इसके बाद राजा परीक्षित व्यासपुत्र शुकदेव मुनि के पास पहुंचे और उन्हें भागवत कथा सुनाने के लिए कहा। तभी से भागवत कथा सुनने की परंपरा प्रारंभ हुई थी। इसके बाद कथावाचक में भक्ति ज्ञान और वैराग्य की विस्तृत कथा का वर्णन किया। इस मौके पर मुख्य यजमान महेंद्र पांडेय,अंगद पाल,गिरी रंग दुबे, पीयूष पाल,दयाराम,बाबूलाल, अनिल पाल,आयुष, मुकेश अवनीश समेत बहुत से श्रोता मौजूद रहे।