∆∆••महाराज जी के निधन की खबर सुनते ही अनुयायियों में दौड़ी शोक की लहर
∆∆•• बाबा के आश्रम पर पचास से अधिक वर्षों से निरंतर संचालित है अखंड रामनाम संकीर्तन
बांदा
स्वामी अवधूत महाराज का नई दिल्ली स्थित उनके शिवकला मंदिर में सुबह तीन बजे हार्ट अटैक से देहावसान हो गया। इसकी सूचना मिलते ही उनके गृह जनपद सहित दिल्ली तथा अन्य जनपदों के उनके अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ गई।
दुखद समाचार मिलने पर भी उनके शिष्यों को विश्वास नहीं हो रहा था। लोग एक दूसरे को फोन कर वास्तविक जानकारी करते रहे। सोशल मीडिया में तमाम लोगों द्वारा मौनीबाबा धाम में उनका अंतिम संस्कार किए जाने की सूचना डालने से भ्रम की स्थिति बनी रही। उनके शिष्य तथा अनुयायी बड़ी संख्या में मौनीबाबा धाम पहुंचने लगे। जब उनको दिल्ली में अंतिम संस्कार होने की जानकारी हुई तो सैकड़ों लोग वापस लौटने को मजबूर हुए। स्वामी जी के अन्तिम संस्कार में शामिल होने बच्चा सिंह काजीटोला, आनंद स्वरुप द्विवेदी, राजाबाबू सिंह, पप्पू शर्मा, गंगासागर मिश्रा, रमेश पटेल सहित लगभग पचास से अधिक उनके भक्त शिष्य दिल्ली रवाना हो गए हैं।
सिमौनी धाम स्वामी अवधूत महाराज की जन्म स्थली है, उन्होंने इसी गांव के बगल से बह रही गडरा नदी में खड़े होकर धूप व बारिश के बीच घोर तपस्या कर सिद्धि प्राप्त किया था, वह शुरू से ही हठी स्वभाव के रहे, इसी हठ नें उन्हें उनकी घोर साधना के संकल्प को पूरा कराया और उनकी हठ साधना के कारण ही छोटा सा गांव सिमौनी, सिमौनी धाम के नाम से समूचे देश में विख्यात हो गया। बबेरू तहसील मुख्यालय से तेरह किलोमीटर दूर ग्राम सिमौनी जो आज आस्था का केंद्र बन चुका है। वर्ष 1923 में पं.रामनाथ के घर उनका का जन्म हुआ था। जिनका नाम बलराम रखा गया। वही बालक आगे चलकर स्वामी अवधूत महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए। स्वामी जी नें प्रारंभिक स्तर की शिक्षा ग्रहण करने के बाद हठ साधना के पूर्व राजनीति के क्षेत्र में उतरकर वर्ष 1955 में ग्राम प्रधानी के चुनाव में भाग्य आजमाया। पराजय के बाद घर छोड़कर वैराग्य धारण कर रात्रि में चित्रकूट स्थित ब्रह्मलीन परशुराम स्वामी जी के आश्रम में जाकर वस्त्र त्याग कर संत बनने की दीक्षा ली।
कुछ दिन रुकने के बाद गुरु आश्रम से खड़ाऊं व कमंडल लेकर चले गए। वृंदावन में भी कुछ दिनों तक साधना किया। वहां से पुनः आश्रम लौटे। अति प्राचीन साधना स्थली सिमौनी जो कि देव पुरुष श्याम मौनी के नाम से प्रख्यात हुआ। कुछ दूर से निकले गडरा नाला में भीषण ठंड में जल सूर्याेदय के पूर्व के समय तक गले तक घुस कर शरीर को तपाते व गर्मियों तपती धूप में बालू में पड़े रहकर शारीरिक वासनाओं को जला डाला।
इसके पश्चात 1966 में गौरक्षा आंदोलन में संतों के ऊपर गोली चलने के दौरान वहां भी योद्धा की तरह डटे रहे और जेल भी गए। वर्ष 1967 में स्वामी जी को हनुमान जी नें स्वप्न में आदेश दिया कि भंडारा करो तभी से मौनी बाबा की समाधि स्थल पर प्रथम भंडारा छोटे रूप में शुरू किया गया। इसके बाद स्वामी जी नें उज्जैन के क्षिप्रा नदी के किनारे आश्रम बनाकर तपस्या की। यहां पांच वर्ष गुजारे। दिल्ली के घड़ौली में अवधूत आश्रम बनाकर भक्तों सहित रहकर तप साधना में लीन हो गए। हर वर्ष 15 से 17 दिसंबर तक मेला व भंडारे का आयोजन होता है। जिसमें लाखें की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं और बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते हैं।
विगत आठ दशक पूर्व अवधूत जी महाराज द्वारा शुरू किया गया भंडारा हर साल बृहद रूप धारण करता जा रहा है, जहां साधु संतों के अलावा लाखों की तादाद में आसपास के गांव के लोग प्रसाद ग्रहण करने पहुंचते हैं।महाप्रसाद की पंगत में भाईचारे का सद्भाव देखते ही बनता है। इस महाप्रसाद में धर्म की दीवार भी बाधक नहीं बनती ,आसपास मुस्लिम बहुल गांव की बस्ती आबाद है और यहां के लोग भी भंडारे में अपना योगदान देते हैं।
हनुमान जी के परम उपासक बलराम अवधूत महाराज द्वारा जहां सिमौनी धाम में हर साल विशाल भंडारा कराया जाता है। वही वर्ष 1969 में अखंड राम नाम संकीर्तन की शुरुआत कराई जो लगातार आज भी जारी है।