कवि केदारनाथ सिंह की बहुचर्चित पंक्ति है–जाना हिन्दी की सबसे खतरनाक क्रिया है। एक साहित्य-संस्कृतिजीवी मानुष अरुणेश नीरन का पार्थिव प्रस्थान कम से कम पूर्वांचल के बड़े पटल से एक गहरी रिक्ति और सूनेपन का अहसास करा रहा है। उनके कद का घनत्व जितना आकर्षक था उनकी सकर्मकता भी उतनी ही लाजवाब थी। देवरिया जनपद के वर्तमान होने का एक अर्थ वहाँ अरुणेश नीरन का होना भी था। उनकी मैत्री और सामाजिक सम्बंधों का दायरा इतना वृहत्तर था, जिसमें बुद्धिजीवी समाज से लेकर आमजन तक की समाई थी। देवरिया खास में जन्मे और जीवन के उत्तरकाल का एक बड़ा कालखण्ड बुद्ध पीजी कालेज के प्राचार्य के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान करने वाले नीरन जी साहित्य और संस्कृति के ऐसे चलन-कलन बंदे रहे जिन्होंने इस क्षेत्र की पीढ़ियों को अपने आर्द्र स्नेह, गतिशील व्यक्तित्व ,पूरबीपन और भाषा-संस्कृति की अलख से निरंतर समृद्ध किया।
वरिष्ठ साहित्यकार अष्टभुजा शुक्ल
भोजपुरी भाषा और संस्कृति के लिए खासतौर से समर्पित अरुणेश नीरन नें उसके उत्थान और विकास के लिए गोरखपुर, देवरिया, बनारस, वर्धा,मुम्बई से मारीशस तक को एक कर दिया। विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय से लेकर वे अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव रहे एवं लंबे समय तक ‘ समकालीन भोजपुरी पत्रिका’ का संपादन किया।’ इसी के साथ ‘ हिन्दी भोजपुरी शब्दकोष’ एवं ‘ पुरइन पात ‘ उनके ऐतिहासिक महत्व के काम हैं। अभी हाल में प्रकाश उदय और डा.बलभद्र के सहयोग से नीरन जी के मुख्य संपादकत्व में प्रकाशित ” प्रतिनिधि भोजपुरी कविता ” इस दिशा में उनके भगीरथ प्रयत्नों का एक महत्वपूर्ण प्रकाशन बहुचर्चित है।
नीरन जी भोजपुरी के साथ हिन्दी के साहित्यिक और सांस्कृतिक समाज से भी नाभिनालबद्ध रहे। गोरखपुर विश्वविद्यालय के तद्युगीन हिन्दी प्राध्यापकों के साथ उनकी अखण्ड मैत्री और सम्बद्धता जगजाहिर है जिसमें साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, अनंत मिश्र, रामदेव शुक्ल, कृष्ण चंद्र लाल,चितरंजन मिश्र आदि की एक गरिमामय जमात है। वे ” दस्तावेज ‘ पत्रिका के नियमित लेखक रहे जिसमें उनके रोचक संस्मरणों का एक विपुल आख्यान है। यह दिलचस्प है कि इतनी प्रगाढ़ता के बावजूद विश्वनाथ जी हिन्दी के हित में भोजपुरी को अकादमी की अनुसूची में अवांछित मानते रहे और नीरन जी उसकी स्थापना में प्राणपण से जुटे रहे।बावजूद इसके दोनों की आत्मीयता में रत्ती भर का फर्क नहीं आया। लंबे समय तक अरुणेश नीरन साहित्य अकादमी के सदस्य भी रहे। वे बिना किसी विश्वविद्यालय के भी भोजपुरी के मानद कुलपति की तरह जिए और रहे।
काशी विश्वविद्यालय के छात्र रहे अरुणेश नीरन के दीक्षागुरु तो प्रमुख कथाकार डा.शिवप्रसाद सिंह रहे लेकिन इसी के साथ नीरन जी की प्रेरणा के मुख्य स्रोत रहे विख्यात साहित्य-संस्कृति चिंतक और लेखक पंडित विद्यानिवास मिश्र। वस्तुतः विद्यानिवास मिश्र की वृहद रचनावली के एक खण्ड के संयोजक भी अरुणेश नीरन हैं। रचनावली के मुख्य संपादक दयानिधि मिश्र के साथ नीरन जी के न केवल पारिवारिक संबंध रहे बल्कि विद्यानिवास जी की पुण्यस्मृति में संस्थापित अनेक संस्थाओं के वे संस्थापक सदस्यों और अनन्य सहयोगी के रूप में भी ख्यात रहे।
वेश-विन्यास के प्रति सजग, विनोदवृत्ति से भरपूर, ताम्बूलरचित अधरों में मंद मुस्कान और संस्मरणों से हँसी की उच्छलता निर्मित करनेवाले अरुणेश नीरन उतने ही यारबाश, संवेदनशील, परदुःखकातर और साहित्यिक मजमों के अलग से पहचाने जाने वाले व्यक्तित्व थे।उनका व्यक्तित्व सहज था।घुलनशीलता उनका गुण था। वे रात-रात भर साहित्यकारों के मनोरंजक किस्से सुना सकते थे। उम्र में पूरे दशक भर की वरिष्ठता के बावजूद वे व्यक्तिगत रूप से मुझसे मित्रता के स्तर पर बात करते थे। उन्होंने अभी हाल में ही अपनी दिवंगत पत्नी की पुण्यस्मृति में अज्ञेय सम्मान का उपक्रम शुरू किया था जिसका दूसरा ‘अज्ञेय सम्मान’ ख्यात कथाकार उदय प्रकाश को दिया गया। अभी पिछले 7 मार्च को अज्ञेय जी के जन्मदिन पर मुझे स्मृति व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया था। नीरन जी कार्यक्रम के मुख्य मेजबान थे।उन्होंने अपनी ढलती आवाज में कई बार कहा-आपने बहुत अच्छा व्याख्यान दिया। वास्तव में तभी से उनका स्वास्थ्य कुछ चरमरा रहा था।जाने क्यों हर बार की भेंट में वे मुझे संबोधित करके कहते– अष्टभुजा जी,आप मुझे धूमिल की तरह दिखाई देते हैं। यह उनका अमित स्नेह ही था और क्या कहूँ!अनेक यादें हैं, साथ की,फोन की। सन 2020 के कोराना के दुर्घट समय में मैंने अपने जनपद बस्ती पर केन्द्रित एक पुस्तक संपादित की– बस्तीः अतीत से वर्तमान तक। उसके बाद नीरन जी नें देवरिया जनपद पर केन्द्रित पुस्तक के संपादन का बीड़ा उठाया। मेरी पुस्तक मँगायी और बोले–आपने तो मेरा रास्ता आसान कर दिया अष्टभुजा जी। यह उनका बड़प्पन था। दूसरों को श्रेय देना भी उनकी एक फितरत थी।
आज जब अरुणेश नीरनजी के कीर्तिशेष रह जाने की खबरों से फोन पटे हुए हैं तब लगता है कि वे यहीं सबके बीच से थोड़ी देर के लिए उठकर चले गए हैं। फिर आ जाएँगे।जैसे वे कभी कभी अपने बेटे पारितोष के नोएडा स्थित आवास से फोन पर बतियाते थे कि अमुक तारीख तक कहाँ-कहाँ से होते हुए देवरिया वापस आ जाऊँगा।
नीरन जी लोगों के बीच अलग से दिखते थे। सलीके से धोती कुर्ता जाकेट और उत्तरीय में। अबे-तबे की भाषा में भदेस,मंद मुस्कान,रचित पान। वे हठीले ढंग से साहित्यकार कम, साहित्य और संवेदना के विकीर्णन अधिक थे। भोजपुरी संस्कृति की अमराइयों का कोकिल कूककर उड़ गया। लेकिन उसकी उडा़न जमीनी थी,वायवीय नहीं।आत्मा के पंछी फिर फिर आते हैं। लगता है अपने विपरीत स्वास्थ्य के बावजूद वे सबकी सुविधा-असुविधा की निगरानी कर रहे हैं।