दक्ष प्रजापति की पत्नी के नाम पर प्रयोग होता है ‘ प्रसूतिगृह ‘ शब्द:
डॉ.अजीत मणि त्रिपाठी ( पत्रकार एवं समालोचक)
आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग होने वाले प्रसूति गृह, प्रसूति लाभ, प्रसूति किट, प्रसूतग्य, प्रसूति कक्ष, प्रसूति वेतन, प्रसूति ज्वर, प्रसूति तंत्र, प्रसूति विद्य, प्रसूति अवकाश ,प्रसूति विभाग, प्रसूति सहायक, प्रसूतिशास्त्री, प्रसूति विद्या, प्रसूति अभिघात, प्रसूति विज्ञान, प्रसूति शास्त्र, प्रसूति विशेषज्ञ शब्द कहां से आए यह कौतूहल का विषय है। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि की अमूल्य रचना में जिस महिला का सर्वाधिक योगदान है, उन्ही के नाम पर आज भी यह शब्द प्रयोग होता है। इस शब्द की महत्ता सतयुग से प्रारंभ होकर त्रेतायुग, द्वापरयुग सहित कलियुग में भी प्रधानत: रूप से प्रयोग हो रहा है। आखिर क्या कारण है कि उक्त शब्द का समानार्थी कोई शब्द नहीं बन पाया। उक्त शब्द की विस्तृत व्याख्या करने के पश्चात जो परिणाम आया, उसके अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी एवं माता सरस्वती के पुत्र दक्ष प्रजापति की पत्नी एवं भगवान शंकर की भार्या सती की माता प्रसूति के नाम पर आज भी उक्त शब्द प्रयोग हो रहा है।
दक्ष प्रजापति की दो पत्नियां थीं, जिनमें प्रथम का नाम प्रसूति तथा दूसरी का नाम वीरणी था।
माता प्रसूति की कन्याएँ:
पुराणों और वेदों के अनुसार दक्ष और प्रसूति की कुल २४ कन्याएँ थीं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं- श्रद्धा, मैत्री, दया, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धिका, लज्जा, गौरी, धुमोरना, शान्ति, सिद्धिका, कीर्ति, ख्याति, सती, सम्भूति, स्मृति, प्रीति, क्षमा, सन्नति, दामिनी, ऊर्जा, स्वाहा, स्वधा ।
इन चौबीस कन्याओं में से तेरह पुत्रियाँ यमराज को, एक-एक पुत्री भगवान शंकर,पुलत्स्य,पुलह,कृतु,वशिष्ठ, अंगिरस,मरीचि,अग्निदेव,पितृस, शनिदेव और भृगु को प्रदान की गई थीं।
यमराज की पत्नियों के नाम
श्रद्धा, मैत्री, दया, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, धुमोरना, शान्ति, सिद्धिका, कीर्ति। भगवान शिव की पत्नी का नाम सती, अग्निदेव की पत्नी का नाम स्वाहा,पितृस की पत्नी का नाम स्वधा, भृगु की पत्नी का नाम ख्याति, मरीचि की पत्नी का नाम सम्भूति,अंगिरस की पत्नी स्मृति, वशिष्ठ की पत्नी ऊर्जा, पुलह की पत्नी क्षमा, पुलत्स्य की पत्नी प्रीति, कृतु की पत्नी सन्नति,शनि की पत्नी दामिनी थी।
प्रसूति स्वयंभू मनु की कन्या और दक्ष प्रजापति की पहली पत्नी थीं। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं थीं और वीरणी से 60 कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थीं। समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुई। क्योंकि सृष्टि की रचना में इन कन्याओं का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है इस कारण आज भी जिस कक्ष में प्रसव क्रिया होती है उस कक्ष का नाम माता प्रसूति के नाम पर रखा जाता है। विद्वानों के मतानुसार ऐसा मानना है कि माता प्रसूति की ऐसी महिमा है कि उक्त कक्ष में जन्म लिया हुआ नवजात शिशु सृष्टि की रचना में अपना अमूल्य एवं अमूर्त योगदान प्रदान करेगा।