भारत भू के भव्य शिखर पर “कंचन” कंचन कलश सजायें

आओ चलो उल्लसित मन से भारतीय नववर्ष मनायें
सत्य सनातन धर्म ध्वजा को विश्व क्षितिज फिर फहरायें
चलो गुलामी की जंजीरों
को निज हाथों से हम तोड़ें
जिनके आदी बने हुए हैं
उनको स्वेच्छा से हम छोड़ें
अपने से अपने ही पथ में
क्यों हम डाल रहे हैं रोड़े
थोड़ा सा लगाम कस पकड़ें
भाग रहे यदि मन के घोड़े
और प्रकृति की करें वन्दना घर-घर तोरड़द्वार सजायें
आओ चलो उल्लसित मन से भारतीय नववर्ष मनायें
अपनी संस्कृति को अपनायें
पढ़कर मंगल वेद ऋचाएं
चैत्र शुक्ल की प्रतिपद तिथि
में देवी की प्रतिमा बैठायें
सुख समृद्धि घर घर में आये
ऐसा उत्तम भाव जगायें
फसल खेत से घर में लायें
झूम झूमकर पचरा गायें
पूजा पाठ धार आहुति से धरा दिशा अम्बर महकायें
आओ चलो उल्लसित मन से भारतीय नववर्ष मनायें
सूरज की अरुणाई के संग
नई नई तरुणाई के संग
सुन्दर सुखद उछाह पालकर
उर्वर मुखरित उच्च भाल कर
खोई संस्कृति रोज खोजकर
पौराणिक अभिलेख ओजभर
भारत माँ के आँचल में भर
चरणों में अपनों का सिर धर
भारत भू के भव्य शिखर पर “कंचन” कंचन कलश सजायें
आओ चलो उल्लसित मन से भारतीय नववर्ष मनायें

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