∆∆•• पूर्व में जड़ी बूटियां से होता था, लोगों का निःशुल्क इलाज
अजीत पार्थ न्यूज संवाददाता धनघटा संत कबीर नगर
जनपद के विकास खंड पौली मुख्यालय के बगल में ही स्थित पचरा के कबीर विज्ञान आश्रम को अब नजरें इनायत की दरकार है। गैर प्रांत एवं गैर जनपदों से आकर कबीरपंथी यहां कबीर के उपदेशों को सुनते और देते हैं। यही नहीं यहां पर पूर्व में जड़ी बूटियों से वहां पर पहुंचने वाले रोगियों का इलाज भी होता था। दूसरों को स्वास्थ्य लाभ देने वाला कबीर विज्ञान आश्रम इस समय खुद ही निराश्रित अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है।
जर्जर प्रवेश द्वार
यहां के बुजुर्गों की माने तो इस मठ का अस्तित्व सौ वर्ष से ऊपर का है। पूर्व में तकरीबन दो एकड़ में फैले हुए इस आश्रम का क्षेत्रफल जहां कुआंनो नदी की कटान से सिकुड़ गया है। वहीं पर अब यह कबीर की संस्था से जुड़े लोग और सरकारी तंत्र की उदासीनता से अपना अस्तित्व खोने के कगार पर है। जहां पर यहां से निरीह लोगों को निशुल्क उपचार मिलता था। वहीं पर आज यह खुद लोगों की उदासीनता से बीमार होने के कगार पर है।
भुईला देवी के बाद सुमिरन साहब ने संभाली कमान
यहां पर दूरदराज से आने वाले लोगों का जड़ी बूटियां से उपचार माता भुईला देवी करती थी। ऐसा यहां के वर्तमान महंत सुकृत दास समेत क्षेत्र के बहुत से लोगों का कहना है। इनका यह भी कहना है कि बाद में बगल गांव के निवासी शुरू से ही सत्संग में रमे रहने वाले सुमिरन साहब ने इन से दीक्षा प्राप्त कर परंपरा को आगे बढ़ाया। यहां पर करीब 100 वर्ष पूर्व जड़ी बूटियां से यह परिसर गुलजार हुआ करता था। जहां पर असाध्य रोगों का भी उपचार हो जाया करता था। लेकिन अब यह मठ खुद ही लोगों की नजरे इनायत पर टिका हुआ है।