डॉ. उमाशंकर चतुर्वेदी “कंचन” वाराणसी
सनातन धर्म के रक्षक
दिये बलिदान तब जाकर
है हर्षित आज सुर नर मुनि
भवन में राम को पाकर
उन्हीं का त्याग पौरुष शौर्य ले बहती हवायें हैं
चलो द्रष्टा बनें हम सब सुना है राम आये हैं
ये अवसर खो नहीं सकते
घरों में सो नहीं सकते
चलेंगे रामधुन गाकर
डगर में ध्वज को फहराकर
कई जन्मों के संचित पूण्य से हमको बुलाये हैं
बिता वनवास तंबू में अवध में राम आये हैं
चतुर्दिक दाँत से राक्षस
जिह्वा सा सनातन है
अगर रस स्वाद लेना है
पकड़ लो भागता मन है
न जाओ दल के दल दल में बहुत अबतक छलाये हैं
जगत के नाथ तंबू से महल में आज आये हैं
उछलकर नीर सरयू का
चरण छूने को उत्सुक है
सजी दुल्हन सी नगरी है
अचम्भित देव क्या लुक है
बनाकर राम का मंदिर पुनः रावण जलाये हैं
असुर शासक के चंगुल से भवन में राम आये हैं
मुदित हैं गिद्ध कपि सारे
चले आये अवध द्वारे
गगन से सूर्य-चन्दा संग
निहारे देव गण तारे
मनाओ मिल खुशी कंचन बहुत रिपु जन रुलाये हैं
विराजें राम जो मंदिर वे कण-कण में समाये हैं
बना लो जन्म तुम अपना सियावर नाम को गाकर
सजा लो घर अयोध्या सी केशरिया ध्वज को फहराकर
जीवन में किसी के भी
दो इक अवसर ही आते हैं
जीवन पथ सुधर जाये
समय दे, वे बुलाते हैं
शरण में जा, उबर जाओ, उबारेंगे वे अपनाकर
बना लो जन्म तुम अपना सियावर नाम को गाकर
सनातन धर्म संस्कृति के
परम पोषक उपासक हैं
स्वयं में जो हुए शासित
पुरुष उत्तम वे शासक हैं
उन्हीं का अनुगमन कर तू , उसी रस में तू रहना कर
बना लो जन्म तुम अपना सियावर नाम को गाकर
वे राजा को भिखारी
रंक को राजा बनाते हैं
कृपा उसपे वे बरसाते
जिन्हें द्रोही सताते हैं
अतः झुक जा भलाई है , ‘कंचन’ का तू कहना कर
बना लो जन्म तुम अपना सियावर नाम को गाकर