पूर्वजों के प्रति सम्मान एवं कृतज्ञता का प्रतीक है पितृपक्ष

∆∆•• 18 सितंबर 2024 से प्रारंभ हो रहा है पितृपक्ष

डॉ.अजीत मणि त्रिपाठी, बस्ती

पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पारिवारिक और पवित्र धार्मिक अवसर है। यह पर्व विशेष रूप से सनातन धर्म में मनाया जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य पूर्वजों को श्रद्धा सुमन अर्पित करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करना है। यह है मार्ग निर्देशित करता है कि हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और उन्हें याद करें । मां भगवती भाग्योदय केंद्रम् वाराणसी के निदेशक एवं श्री सहदेव संस्कृत महाविद्यालय महाराजगंज गाजीपुर में व्याकरण के प्राध्यापक पं. अविनाश चतुर्वेदी “चंदन” के मुताबिक पितृपक्ष या श्राद्ध हिंदू समाज में पूर्वजों की याद में मनाया जाता है। इसका प्रारंभ 18 सितंबर 2024 भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ हो रहा है और 2 अक्टूबर 2024 को कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि जिसे (सर्वपितृ अमावस्या) भी कहते हैं तक चलेगा।

पौराणिक मान्यता के अनुसार हमारी पिछली तीन पीढ़ियों की आत्माएं स्वर्ग और पृथ्वी के बीच स्थित पितृलोक में रहती हैं। पितृलोक में अंतिम तीन पीढ़ियों का ही श्राद्ध किया जाता है। इस दौरान पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वह प्रसन्न होकर अपने वंश को सुख, समृद्धि प्रदान करते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है और पितृ देव रुष्ट हो जाते हैं।

आचार्य के अनुसार घर के मुखिया या प्रथम पुरुष अपने पितरों का श्राद्ध कर सकता है। अगर मुखिया नहीं है तो घर का कोई अन्य पुरुष अपने पितरों को जल अर्पित कर सकता है। इसके अलावा पुत्र और नाती को भी तर्पण करने का अधिकार प्राप्त है। पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार स्नान पूजन के बाद पितरों का तर्पण के साथ पिंडदान करना चाहिए। हथेली भर अनाज का पिंड,( जौ के आटे, खीर या गाय के दूध के खोवे) का बनाकर उसे पितरों को अर्पण करना चाहिए।

धर्म शास्त्रों के अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्व भाग में माना गया है। ये आत्माएं मृत्यु के बाद एक से लेकर सौ वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहती हैं।

पितृ पक्ष का महत्व:-

पूर्वजों का सम्मान- पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध तर्पण एवं अन्य धार्मिक क्रियाएं करते हैं।

आत्मा की शांति- विश्वास किया जाता है कि इस समय किए गए तर्पण और श्राद्ध से पूर्वजों को आत्म शांति मिलती है और उनकी आत्माएं स्वर्ग के मार्ग की ओर अग्रसर होती हैं ।

पारिवारिक बंधन- यह अवसर परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है लोग सामान्यतः अपने घरों में इकट्ठा होते हैं और एक साथ श्राद्ध करते हैं जिससे परिवार में सामंजस्य की भावना और एकता बढ़ती है।

कृतज्ञता का प्रदर्शन- पितृ पक्ष हमें या सिखाता है कि हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए जिन्होंने हमें जीवन और संस्कार दिए हैं।

धार्मिक क्रियाकलाप- इस अवधि में विभिन्न श्राद्ध अनुष्ठान किए जाते हैं, जैसे तर्पण और तीर्थ श्राद्ध, एकोदिष्टश्राद्ध, पावर्ण श्राद्ध, त्रिपिंडी श्राद्ध, आदि इससे व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है। और उन परंपराओं का पालन होता रहता है, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी समृद्ध और संस्कारी होती है।

पितृ पक्ष न केवल पूर्वजों को सम्मानित करने का अवसर है, बल्कि यह हमें सिखाता है कि परिवार कृतज्ञता और परंपरा कितनी महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा समय है जब हम अपने जीवन में उन लोगों को याद करते हैं जिन्होंने हमें मार्गदर्शन किया। इस सनातन परंपरा के द्वारा अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का शुभ अवसर प्रदान किया। जिससे हम देव, ऋषि, पितृ तर्पण कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

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