देवनगरी अयोध्या में कार्तिक मास में लगने वाले पंच कोसी तथा चौदह कोसी परिक्रमा का महात्म्य

रिपोर्ट- डॉ.अजीत मणि त्रिपाठी

पंचकोसी परिक्रमा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन अयोध्या के पंच कोस परिवृत्त में पंचकोसी परिक्रमा की जाती है । इस परिक्रमा में भक्तगण और स्थानीय निवासी अयोध्या आकर तिथि का इंतजार करते हैं। तिथि के लगने पर सरयू नदी में स्नान कर परिक्रमा पथ पर साष्टांग दंडवत कर परिक्रमा प्रारम्भ की जाती है। परिक्रमा अवधि में अपने इष्ट का ध्यान भजन-कीर्तन करते हुए परिक्रमा पूर्ण किया जाता है, साथ ही अयोध्या के विभिन्न मंदिरों का दर्शन भी श्रद्धालु करते है।

अयोध्या के प्रतिष्ठित संतों के अनुसार, मान्यता है कि परिक्रमा मार्ग पर एक पग चलने भर से पूर्व जन्म के तमाम पाप धुल जाते हैं। इसे वांछित संख्या के अनुसार पूर्ण करने पर श्रद्धालुओं की मनौतियां भी पूर्ण होती हैं।
संतों नें बताया कि अयोध्या की परिक्रमा का महात्म्य और भी अधिक है। क्योंकि यहां की परिक्रमा का मतलब अयोध्या के पांच हजार से अधिक मंदिरों में विराजमान ठाकुरजी व ऋषियों-मुनियों के स्थलों की परिक्रमा एक ही बार में पूर्ण कर लेना है। इसी के साथ अक्षय नवमी पर किया गया पुण्य अक्षय हो जाता है।

अयोध्या में लगती है चौरासी, चौदह और पांच कोस की परिक्रमा

अयोध्या में सम्पूर्ण वर्ष कोई न कोई धार्मिक आयोजन होता रहता है, किंतु कार्तिक मास में होने वाली परिक्रमा का विशेष महत्व है। यहां 84, 14 और 5 कोस की परिक्रमा लगती है। 5 कोस की परिक्रमा अयोध्या क्षेत्र में लगती है, 14 कोस की परिक्रमा अयोध्या शहर में लगती है और 84 कोस की परिक्रमा पूरे अवध क्षेत्र की लगती है। मान्यता है कि अयोध्या की परिक्रमा करने के बाद कार्तिक मास में कार्तिक स्नान का विशेष महत्व है। वहीं जो श्रद्धालु 14 कोस की परिक्रमा नहीं लगा पाते, वह देवोत्थान एकादशी के दिन पंचकोसी परिक्रमा करते हैं।

परिक्रमा से शरीर की होती है शुद्धि

मान्यता है कि अयोध्या में परिक्रमा की परंपरा आज से नहीं बल्कि सदियों से चल रही है। जिस तरह मथुरा, वृंदावन और ब्रज कोस की परिक्रमा लगती है, उसी तरह अयोध्या धर्म नगरी की परिक्रमा लगती है। ऐसा करने से पंचतत्वों से निर्मित इस शरीर की शुद्धि होती है। अयोध्या की परिक्रमा करने से न सिर्फ इस जन्म के बल्कि सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। परिक्रमा देने के बाद सरयू नदी में स्नान किया जाता है और जय श्रीराम के जयघोष के साथ परिक्रमा पूर्ण होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, देशभर के सभी तीर्थों पर एक विशेष ऊर्जा महसूस होती है और यह ऊर्जा मंत्रों और पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों से निर्मित होती है। जब यह ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है, तब मन में शांति आती है और आत्मबल मजबूत होता है।

विद्वानों के अनुसार 84 कोसी परिक्रमा से मनुष्य 84 लाख योनियों से मुक्ति पा जाता है और 14 कोसी परिक्रमा का तात्पर्य है 14 भुवन से मुक्ति है, एवं पंचकोसी परिक्रमा में अयोध्या में स्थित भगवान राम लला के मंदिर समेत प्रमुख मंदिरों की परिक्रमा शामिल है। परिक्रमा करने से श्रद्धालुओं को एक आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है ।

चौदह कोसी परिक्रमा

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्या के चौदह कोस के परिवृत्त से परिक्रमा की जाती है। इस परिक्रमा को करने के लिए भक्त अयोध्या आते हैं और स्थानीय लोग नवमी का इंतजार करते हैं। तिथि के लगने पर सरयू स्नान कर परिक्रमा पथ को सिर से स्पर्श कर प्रणाम कर भगवान का ध्यान कर परिक्रमा प्रारम्भ करते हैं । परिक्रमा अवधि में नंगे पैर चलते हुए, भजन इत्यादि करते हुए परिक्रमा प्रारम्भ स्थल पर पहुंच कर परिक्रमा को समाप्त कर अयोध्या के मंदिरों का दर्शन कर अपने स्थान को वापस जाते हैं।

अयोध्या भगवान विष्णु का मस्तक

अयोध्या का प्रधानता सप्त पुरियों से है,यह सप्त पुरियां मोक्षदायिनी नगरियों की सूची से भी परिभाषित होती हैं। इनमें मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, उज्जैन, द्वारिका के साथ अयोध्या का उल्लेख सबसे पहले किया गया है। इसे संयोग ही नहीं कहा जा सकता। एक अन्य विवरण में अयोध्या को भगवान विष्णु का मस्तक बताया गया है। अयोध्या का वैशिष्ट्य श्रीराम के अवतार से शिखर पर पहुंचता है, किंतु उनके कई पूर्वजों ने भी इस दिव्य-दैवीय नगरी को प्रतिष्ठापित करने के साथ संपूर्ण मानवता को समुन्नत किया था। मनु सहित इक्ष्वाकु, पृथु, दिलीप, रघु, भगीरथ, दशरथ जैसे प्रतापी नरेशों से सेवित अयोध्या निरंतर उत्कर्ष का वरण करती रही है।

error: Content is protected !!