गोस्वामी तुलसीदास जी का नाना प्रेम

डॉ.अजीत मणि त्रिपाठी: पत्रकार/समालोचक

गोस्वामी तुलसीदास जी की रचनाओं के अनुसार लगता है वह नाना से बहुत प्रेम करते थे और वह अपने नानाजी के बहुत बड़े भक्त थे। संभव है नाना नें ही उनका पालन पोषण किया हो। श्री रामचरितमानस में उन्होंने नाना के गुणों का बखान जगह-जगह पर उद्धृत किया है और उन्हें चौपाइयों के माध्यम से अमर कर दिया है। संभवतः गोस्वामी जी के नाना दो भाई थे एक का नाम मंगल तथा दूसरे नाना का नाम मनोहर था। मानस के अनुसार मंगल नाना पुरोहिताई का कार्य करते थे।

भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता थी उसकी सूची संभवतः मंगल नाना नें ही बनाई थी… “औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना ।।”

गोस्वामी जी के मुताबिक उनका सारा जीवन पुरोहिताई में ही व्यतीत हुआ था इसके अतिरिक्त और किसी प्रसंग पर इनकी चर्चा नहीं हुई है। पर मनोहर नाना बहुधंधी व्यक्तित्व के स्वामी थे उनके कुछ धंधों का पता श्रीरामचरितमानस से चलता है।
(1)- मनोहर नाना दक्ष प्रजापति के यज्ञ में भी विमान पर बड़े ठाठ से चढ़कर गए थे…
” सती बिलोके व्योम विमाना। जात चले सुंदर विधि नाना ।।”

(2)- प्रभु श्रीराम के विवाह के लिए महाराज दशरथ जब बारात सजाकर चले तब रानियों नें ब्राह्मणों को बुलाकर बहुत सारा धन-वस्त्र दान दिया था उन ब्राह्मणों में नाना भी थे और ‘आशीर्वाद देते’ हुए राजमहल के मुख्य द्वार पर रखा नगाड़ा भी उन्होंने बजाया था….
“कहत चले पहिरे पट नाना हरषि हने गहगहे निसाना ।।”
(3 )- मनोहर नाना गायन विधा में भी बड़े कुशल थे प्रभु श्रीराम की जब बारात चली तब उन्होंने जी खोलकर गाया था…. “गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ बखाना ।।”

(4) नाना बारात का बाजा भी बजाना अच्छा जानते रहे होंगे। बारात में दूसरे नौकर-भृत्य तो भरे ही थे, पर बजनिया (बैंड-मास्टर) नाना ही थे….
” सेवक सकल बजनियां नाना ।।”
( 5 )- गोस्वामी जी के अनुसार मनोहर नाना नें जनकपुर में श्रृंगार सामग्री (बिसातखाना) की दुकान भी खोली थी…. “पट पांवड़े परहिं विधि नाना ।।”
(6)- वह अच्छे पहलवान भी रहे होंगे और लंका चलकर रावण के यहां नौकरी भी कर लिया होगा वह राक्षसों को कुश्ती लड़ाया करते थे और उनको डांटा-फटकारा भी करते थे…
” नाना अखारे भिरहिं बहुविधि एक एकन्ह तर्जहीं ।।”
(7)- जब भगवान राम तथा रावण का युद्ध प्रारंभ हुआ था तब नाना अपने देश के विरुद्ध लड़ने में कुछ आनाकानी करने लगे थे इस पर रावण नें उन्हें डांटा था….
” सरबसु खाइ भोग कर नाना। समरभूमि भा बल्लभ प्राना ।।”
(8)- तुलसीदास जी के मुताबिक मौका पाकर नाना रावण के यहां से भाग निकले थे और देवताओं के साथ विमान में बैठकर राम रावण का युद्ध देखने लगे थे….
“सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े विमाना ।।”
( 9)- पहलवान आदमी का मन लड़ाई का तमाशा देखने में नहीं लग सकता। नाना भी राम की सेना में भर्ती हो गए। लेकिन रावण जब एक-एक को पकड़कर पीसने लगा तब वानर भालूओं के साथ नाना भी अंगद और हनुमान की दुहाई देते हुए भाग खड़े हुए थे…
” चले पराइ भालु-कपि नाना। त्राहि-त्राहि अंगद हनुमाना ।।”
(10)- बानरों के साथ भाग खड़े होने में नाना को बड़ी लज्जा आई थी। उसके बाद रावण नें आगे की लड़ाई में जब अपने वीरों को भेजा तब नाना उनका मुकाबला करने के लिए अकेले ही अस्त्र-शस्त्र लेकर दौड़ पड़े थे….
“इहां दशानन सुभट पठाये। नाना अस्त्र-शस्त्र गहि धाये ।।”
(11)- नाना कोई ऐसे-वैसे मामूली व्यक्तित्व के आदमी नहीं थे। वह ब्रह्मा, विष्णु और भगवान भोलेनाथ से भाई-भाई का रिश्ता रखते थे…..
” विष्णु-बिरंचि संभु भगवाना। उपजहिं जासु अंस से नाना ।।”
(12)- गोस्वामी जी की रचनाओं के मुताबिक नाना बड़े प्रपंची भी थे, इधर का उधर लगाना तथा लोगों को परेशान करना उनको बहुत पसंद आता रहा होगा। लोग नाहक ही राम को दोष देते होंगे इस पर गोस्वामी जी ने सफाई देते हुए कहा है….
” महि सर सागर सर गिरि नाना। सब प्रपंच तहं आनइ आना।।”

( गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में उक्त नाना शब्द के अधिकतम प्रयोग पर शोध के दृष्टिकोण से उत्सुकतावश कई बार लेखक को श्रीरामचरितमानस पाठ का पारायण करना पड़ा, तब जाकर उक्त चौपाईयां निकल पाईं, आप पाठकगण भी इसका आनन्द लीजिए।)

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