उच्चतम न्यायालय नें हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
अजीत पार्थ न्यूज एजेंसी
उच्चतम न्यायालय नें शुक्रवार को दिए महत्वपूर्ण निर्णय में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के फैसले को त्रुटिपूर्ण बताते हुए उत्तर प्रदेश में मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को राहत दिया है। साथ ही इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जुलाई के दूसरे हफ्ते में इस मामले पर सुनवाई होगी और तब तक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक रहेगी।
उक्त आदेश उत्तर प्रदेश के के 16000 मदरसों के 17 लाख छात्रों के लिए यह बड़ी राहत है । न्यायालय के अनुसार फिलहाल 2004 के कानून के तहत मदरसों में पढ़ाई चलती रहेगी।
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से एएसजी नटराज नें कहा कि मदरसे चल रहे हैं, तो चलने दें, लेकिन राज्य को इसका खर्च नहीं उठाना चाहिए।छात्रों को शैक्षणिक सत्र समाप्त होने पर ही प्रवेश दिया जाना चाहिए। इसमें सामान्य विषयों को वैकल्पिक बनाया गया है। कक्षा 10 के छात्रों के पास एक साथ गणित, विज्ञान का अध्ययन करने का विकल्प नहीं है। हाईकोर्ट के सामने यह छिपाया गया हैं कि धार्मिक शिक्षा दी जाती है। फिजिक्स, मैथ, साइंस जैसे मुख्य विषय वैकल्पिक होने से यह छात्र आज की दुनिया में पिछड़ जाएंगे। किसी भी स्तर पर धर्म शामिल होना एक संदिग्ध मुद्दा है। सवाल किसी डिग्री का नहीं है, उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत तथ्यों में मैं खुद को यह कहने के लिए राजी नहीं कर सका कि उच्च न्यायालय का आदेश गलत था। हम धर्म के जाल में फंस गए हैं। केंद्र नें हाईकोर्ट में कानून का बचाव नहीं किया था “।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में करीब 25 हजार मदरसे हैं। इनमें 16500 मदरसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है, उनमें से 560 मदरसों को सरकार से अनुदान मिलता है। इसके अलावा राज्य में साढ़े आठ हजार गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं।
अभिषेक मनु सिंघवी नें कहा, “सिर्फ इसलिए कि मैं हिंदू धर्म या इस्लाम आदि पढ़ाता हूं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं धार्मिक शिक्षा देता हूं। इस मामले में अदालत को अरुणा रॉय फैसले पर गौर करना चाहिए। राज्य को धर्मनिरपेक्ष रहना होगा, उसे सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और उनके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। राज्य अपने कर्तव्यों का पालन करते समय किसी भी तरह से धर्मों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता। चूंकि शिक्षा प्रदान करना राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में से एक है, इसलिए उसे उक्त क्षेत्र में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय धर्मनिरपेक्ष बने रहना होगा। वह किसी विशेष धर्म की शिक्षा, प्रदान नहीं कर सकता या अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग शिक्षा प्रणाली नहीं बना सकता “।
मदरसों की तरफ से एडवोकेट मुकुल रोहतगी नें कहा कि यह संस्थान विभिन्न विषय पढ़ाते हैं, कुछ सरकारी स्कूल हैं, कुछ निजी, यहां आशय यह है कि यह पूरी तरह से राज्य द्वारा सहायता प्राप्त स्कूल है, कोई धार्मिक शिक्षा नहीं। यहां कुरान एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाता है। हुजैफा अहमदी नें कहा कि धार्मिक शिक्षा और धार्मिक विषय दोनो अलग हैं, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगानी चाहिए।
उच्चतम न्यायालय नें उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि क्या हम यह मान लें कि राज्य ने हाईकोर्ट में कानून का बचाव किया है ? इस पर यूपी सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज नें कहा कि हमनें हाईकोर्ट में बचाव किया था, लेकिन हाईकोर्ट द्वारा कानून को रद्द करने के बाद हमने फैसले को स्वीकार कर लिया हैं। जब राज्य नें फैसले को स्वीकार कर लिया है, तो राज्य पर अब कानून का खर्च वहन करने का बोझ नहीं डाला जा सकता।
क्या मदरसा अधिनियम के प्रावधान धर्मनिरपेक्षता की कसौटी पर खरे उतरते हैं, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है? यूपी सरकार नें कहा, “यह मदरसे खुद सरकार से मिलने वाली सहायता पर चल रहे हैं, इसलिए कोर्ट को गरीब परिवारों के बच्चों के हित में यह याचिका खारिज कर देनी चाहिए। यह धारणा बनाने की कोशिश की जा रही है कि धार्मिक विषय अन्य पाठ्यक्रम के साथ हैं, वह गलत जानकारी दे रहे हैं “।