सनातन संस्कृति में महिलाएं क्यों नहीं काटती हैं कद्दू ?

अजीत पार्थ न्यूज विशेष

प्राचीन वैदिक युग की परंपरा आज भी कायम है, माना जाता है कि स्त्री सृष्टि की देवी होती हैं, और वह संहार में विश्वास नहीं करती है। वर्तमान समय में भी प्राचीन परंपराओं का निर्वहन करते हुए आज भी सनातन संस्कृति को मानने वाली महिलाएं कद्दू को स्वयं नहीं काटती हैं, उसको घर के किसी पुरुष सदस्य से पहले घाव लगवाने के बाद ही महिलाएं उसका सब्जी के रूप में काटकर प्रयोग करती हैं ।

उल्लेखनीय है कि कद्दू पुरुष वर्ग का सब्जी है और माना जाता है कि कद्दू में पुत्र का भाव होता है। इस कारण महिलाएं अपने पुत्र का बलि नहीं देना चाहती हैं। प्राचीन वैदिक युग में बलि की परंपरा थी, जिसमें विभिन्न प्रकार की बलियां दी जाती थीं। आज भी कहीं-कहीं प्रतीकात्मक रूप से कद्दू अथवा नारियल की बलि दी जाती है। छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्रों में कद्दू का स्थान सर्वोपरि है।

उल्लेखनीय है कि कद्दू उत्तर भारत का प्रमुख सब्जी है। यह बहुत ही कम खर्चे में तैयार होकर फल देने लगता है। दो दशक पूर्व तक उत्तर भारत के गांवों के प्रत्येक झोपड़ियों पर कद्दू की बेल चढ़ी हुई दिखाई देती थी। कद्दू के फल के साथ-साथ उसका पुष्प,बेल तथा पत्तियां भी भोजन के रूप में कहीं-कहीं प्रयोग किया जाता है।

दक्षिण भारतीय व्यंजन सांभर का प्रमुख अवयव कद्दू ही है। आज भी सनातन संस्कृति में कद्दू का स्थान सर्वोपरि है। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, जौनपुर, प्रयागराज, कौशांबी, चंदौली, वाराणसी इत्यादि जनपदों में आज भी कद्दू की सब्जी बने बगैर कोई भी धार्मिक आयोजन संपूर्ण नहीं होता है। इन जनपदों में आयोजित होने वाले कथा, भागवत, मुंडन एवं ब्रह्मभोजों इत्यादि सहित लगभग सभी घरेलू आयोजनों में कद्दू की सब्जी प्रमुख रूप से बनती है।

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