अजीत पार्थ न्यूज के लिए डॉ.अजीत मणि त्रिपाठी की रिपोर्ट…
“रक्तदानी मौत को भी ढ़ेर किया करते हैं, रक्तदान सा कर्म बस शेर किया करते हैं, मजबूर को देखकर नजर फेरने वाले, सुन… कभी-कभी हालात किसी को भी घेर लिया करते हैं….”
उक्त शेर.. चंद्रगुप्त मौर्य प्रभा वंश महिला पीजी कालेज के प्रबंधक एवं समाजसेवी डॉ.अनिल कुमार मौर्य पर सटीक बैठता है। संक्रमण के इस युग में एक तरफ जहां रिश्ते-नाते एवं जाति-पाति का दौर चल रहा है, इससे इतर एक पीड़िता का दर्द समझते हुए अपने सभी कार्यों को छोड़कर, वह त्रेतायुगीन गिलहरी की भूमिका का निर्वहन करते हुए बगैर किसी लाग-लपेट के रक्तदान करने कैली अस्पताल बस्ती पहुंच जाते हैं।
ब्लड कैंसर से पीड़ित विकलांग रेखा
हम आपको एक ऐसी लाचार बेटी के, लाचार पिता एवं बहन की कहानी बताने जा रहे हैं, कि आप कुदरत द्वारा उक्त परिवार पर दी गई बेचारगी से सिहर जाएंगे। उल्लेखनीय है कि जनपद के लालगंज बाजार की मूल निवासी रेखा 31 पुत्री रामजी जन्मजात विकलांग है, वह अभागी किसी तरीके से मां-बाप पर आश्रित होकर जिंदगी जी रही थी कि, इसी बीच उसे कुछ शारीरिक समस्याएं हुईं और जांच कराने पर पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है। उक्त सूचना मध्यमवर्गीय आय वाले मां-बाप के लिए किसी बड़े हृदयाघात से कम नहीं था, लेकिन अपने हृदय को मजबूत करते हुए विकलांग कलेजे के टुकड़े को बस्ती, गोरखपुर सहित राजधानी लखनऊ के विभिन्न अस्पतालों में इलाज हेतु दिखाया, लेकिन हर जगह से निराशा हाथ लगी। तिल-तिल कर मर रही सयानी विकलांग बेटी को धनाभाव में किसी तरह से उन्होंने कैली अस्पताल बस्ती में भर्ती करवाया, जहां पर चिकित्सकों नें बताया कि रेखा का जीवन बचाने के लिए प्रतिदिन दो यूनिट प्लेटलेट्स सहित रक्त की आवश्यकता होगी। परिवार के सभी सदस्यों सहित नाते-रिश्तेदारों नें अपना खून दे दिया, लेकर रोज कहां से रक्तदाता ब्लड बैंक में ले आएं यह लाचार बेटी के पिता के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ था।
अस्पताल में भर्ती विकलांग रेखा की छोटी बहन प्रियांशी अग्रहरि जो कि चंद्रगुप्त मौर्य प्रभावंश महिला पीजी कालेज बनकटी में स्नातक तृतीय सेमेस्टर की छात्रा है, उसनें अपनी बड़ी बहन का जीवन बचाने के लिए रोते हुए महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ.अनिल मौर्य को पूरी बात बताया और उसकी बातों को सुनते ही द्रवित होते हुए अनिल मौर्य तुरंत चल पड़े कैली अस्पताल रक्तदान करने। रक्तदान करने के बाद उन्होंने परिवार को दिलासा दिलाया कि, मुश्किल की इस घड़ी में जब भी उन्हें जरुरत पड़ेगी तो वह खड़े मिलेंगे। बाकौल डॉ.अनिल मौर्य नें बताया कि इस तरह का कार्य करने में उन्हें अनोखी सुख की अनुभूति हो रही है।