चुनाव आयोग की सख्ती से सीमित मात्रा में बज रहे हैं लाउडस्पीकर
डॉ. अजीत मणि त्रिपाठी बस्ती
एक समय था कि जब आम जनमानस में प्रचलित लोकगीतों के तर्ज पर गांव-गांव घूमकर ढोल,मंजीरे एवं हारमोनियम की धुन पर बिरहा एवं लोकगीतों के मुखड़े पर गंवई कलाकार लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों के प्रचार किया करते थे। इन कलाकारों द्वारा गाए हुए गीतों को सुनने के लिए ग्रामीणों की भीड़ चौक-चौराहों पर इकट्ठा होती थी और विभिन्न पार्टियों के क्रियाकलाप एवं आगामी योजनाओं की जानकारी आम मतदाता लिया करते थे। इसी के साथ गांव के भदेस कलाकारों को विभिन्न दलों द्वारा कुछ दिनों के लिए रोजी-रोजगार मिल जाता था, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता था।
इधर कुछ बरसों से प्रचार का ट्रेंड बदला है, और वह गांव की संस्कृति को छोड़ते हुए हाईटेक हो चला है। अब मोबाइल पर विभिन्न पार्टियों का सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव प्रचार हो रहा है । गांव के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि पहले जीपों पर लाउडस्पीकर बांधकर विभिन्न प्रत्याशियों के प्रचार-वाहन गांव में प्रवेश करते थे तो छोटे-छोटे बच्चे उनसे बाल मनुहार किया करते थे कि “हे मनई बिल्ला दई दा”…… और यह बच्चे विभिन्न पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा बिल्ला पाकर खूब प्रसन्न हुआ करते थे और विभिन्न दलों के बिल्लों को सहेज कर रखा भी करते थे, लेकिन अब वह परंपरा लगभग समाप्ति की तरफ है। चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से चंद लग्जरी गाड़ियां ही वर्तमान समय में चुनाव प्रचार कर रही हैं। जिन पर फिल्मी गानों एवं भजनों के तर्ज पर विभिन्न पार्टियों के पूर्व रिकार्डेड प्रचार गीत बज रहे हैं।
एक समय था कि गांव में मशहूर बिरहा पार्टियों तथा लोकगीतों के कलाकारों द्वारा विभिन्न प्रचलित गीतों के तर्जों पर पार्टियों के लिए लोकगीत गढ़े जाते थे, जिसको गौर से सुनने के लिए विभिन्न दलों के आस्थावान मतदाता सार्वजनिक जगहों पर इकट्ठा होते थे। क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार उस दौर में जब कांग्रेस पार्टी की केंद्र और प्रदेश में सरकार हुआ करती थी, तब बस्ती सदर विधानसभा क्षेत्र से केरल राज्य की निवासी एवं शरीर से सुदृढ़ अलमेलू अम्माल कांग्रेस की प्रत्याशी हुआ करती थी और जनसंघ,जनता पार्टी एवं लोक दल के कार्यकर्ता कलाकारों के माध्यम से उस समय की मशहूर गीत झमकोइय्या मोरे लाल…. के तर्ज पर अलमेलु अम्माल जइसय गाभिन बिलार, झमकोइय्या मोरे लाल…, इसी के साथ “सजग रहा पंचों बिलार बाय लपकी”…. जनसंघ के कार्यकर्ता, कांग्रेस पार्टी का तत्कालीन चुनाव निशान तारा होइ गईंलीं आवारा ओटवा दीपक पर परी…. सहित लोकदल का चुनाव निशान दो बैलों की जोड़ी पर बने गीत “जोड़ी बर्धा जोतैय किसनवा”…. जैसे प्रचार गीत लोगों के जुबान पर हुआ करता था ।
विभिन्न लोकगीतों के माध्यम से कलाकार वाद्य यंत्रों के सहारे चुनाव प्रचार किया करते थे, साथ ही बड़े नेताओं के जनसभा के आगमन से पूर्व जनता का स्वस्थ मनोरंजन हुआ करता था, इसी के साथ-साथ विभिन्न पार्टियों की घोषणा पत्र जानने का मौका भी आम मतदाताओं को मिल जाया करता था। आधुनिकता एवं सोशल मीडिया के दौर में अब इन कलाकारों की रोजी रोटी छीन लिया है। अब लगभग सभी पार्टियां कैसेटों के माध्यम से चुनाव प्रचार कर रही हैं। जिससे चुनाव में बहुत रंग नहीं आ रहा है।