अजीत पार्थ न्यूज एजेंसी
जनपद प्रयागराज के मेजा तहसील के कठौली ग्राम में सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के षष्ठम् दिवस बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से पधारी कथा व्यास डॉ.अनुरंजिका चतुर्वेदी नें महारास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह लीला सामान्य जनों की समझ से परे है। सच तो यह है कि महारास की लीला जीवात्मा और परमात्मा के मिलन की लीला है, जिसे विरले लोग ही समझ पाते हैं ।
उपनिषद्, वेद, ब्रह्मसूत्र के अनुसार कहें तो ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ से प्रारम्भ इस यात्रा में उसके स्वरूप को जानते हुए तत्वमसि और अहं ब्रह्मास्मि तक पहुँचना तथा पहुँचाना ही रास कथा का रहस्य है। उन्होंने गोपी शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि गो अर्थात इन्द्रियों को जिसने वश में कर लिया है वह है गोप या गोपी। उन गोपियों (प्रत्येक) के साथ भगवान कृष्ण रास करते हैं, यहां तक कि उस पवित्र छवि को देखने स्वयं देवाधिदेव महादेव गोपी वेश में उपस्थित होकर महारास में सम्मिलित हो जाते हैं तथा कालान्तर में वह गोपेश्वर महादेव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। श्रीकृष्ण महारास में निमग्न गोपियों के बीच से गायब हो जाते हैं और वह सभी आँख मूँदकर रास में लीन रहती हैं किन्तु कुछ देर के बाद जब नेत्र खोलती हैं और उन्हें अपने बीच नहीं पाती हैं, तब सभी बेचैन होकर इधर-उधर ढूंढ़ने लग जाती हैं, तो वह उपस्थित होकर कहते हैं नेत्र बंद की स्थिति में जिस आनंद का अनुभव आप लोग कर रहीं थीं वही भाव सदैव रहना चाहिए क्योंकि मैं तो सबमें सदैव विराजमान हूँ ।
डा.चतुर्वेदी नें कथा का विस्तार करते हुए रुक्मिणी हरण एवं कृष्ण विवाह का वर्णन किया, जिसका प्रत्यक्ष आंनद रसिक श्रोताओं नें भगवान कृष्ण के पांव पखार व कन्यादान में सहभागी होकर लिया। भगवान श्री कृष्ण रूक्मिणी के उस अलौकिक झाँकी को देखने के लिए हर्षित मन से समस्त ग्रामवासी टूट पड़े।
इस दौरान प्रमुख रूप सुषमा शर्मा, सुभाषचन्द्र शर्मा, सविता शर्मा, अंकिता, शुभम्, प्रिया एवं निशांत नें विधिविधान से पूजन अर्चन किया।
कथा में प्रधान हरिशंकर शर्मा, बालेंदु कुमार गौतम, वीरेंद्र सिंह, भानुप्रताप गौतम, डॉ.अनिल शर्मा, ज्योति प्रकाश शर्मा, नरेन्द्र शर्मा, जितेंद्र शर्मा, सचिन अवस्थी, रमेश केशरी, जियालाल केशरी, कमलेश पाण्डेय सहित तमाम श्रद्धालु मौजूद रहे।
इस दौरान डॉ.अभिषेक चतुर्वेदी एवं श्रीनाथ तिवारी द्वारा वैदिक पूजन किया गया।