एक हिमालय गढ़ सकता है कोई भी भिक्षा से….

∆∆•• महामना मदनमोहन मालवीय जी की जयंती पर प्रख्यात साहित्यकार डॉ.उमाशंकर चतुर्वेदी “कंचन” की भावाभिव्यक्ति

ब्रह्म ! तुम्हारी धवल सृष्टि में कोई महामना होता है।
अपने लिए नहीं वह जग में जग के लिए बना होता है।।

जन्मभूमि से कर्मभूमि तक ऊपर उठकर आये
दीन-दुखी भारत के जन को अपने गले लगाये
गैर और अपनापन भूले सबको ही अपनाये
मानवता की पेंग बढ़ाये विश्व क्षितिज पर छाये
वटवृक्षों सी जड़ है होती छायादार तना होता है।
अपने लिए नहीं वह जग में जग के लिए बना होता है।।

सब कुछ संभव हो सकता है दृढ़ मन की इच्छा से
एक हिमालय गढ़ सकता है कोई भी भिक्षा से
प्रखर बुद्धि चातुर्य मिला था काशी शिव दीक्षा से
विश्व प्रकाशित नित्य हो रहा विद्या औ’ शिक्षा से
धन्य कोख, उर्वी होती है, जिसने उसे जना होता है।
अपने लिए नहीं वह जग में जग के लिए बना होता है।।

मूना देवी सी माता जग, पिता धन्य ब्रजनाथ हुए
जिसके पुण्य प्रताप ताप ने गर्वित भू का माथ छुए
पराधीनता की बेड़ी हित तेजाबी वे क्वाथ हुए
मालवीय मोहन मदना पर खुश बाबा विश्वनाथ हुए
कंचन वह कुबेर हो जाता शिव का अगर चना होता है।
अपने लिए नहीं वह जग में जग के लिए बना होता है।।

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