कार्तिक मास पर्वों का मास : दीप से देव दीपावली तक – डॉ.उमाशंकर चतुर्वेदी “कंचन”

इन्दु के अमृत बिन्दु वर्षा करनेवाली रात्रि के अवसान प्रारंभ कार्तिक मास का अपने आप में एक विशिष्ट स्थान है जिसके चलते सर्वाधिक पवित्र पर्व इस मास में पड़ते हैं। यही कारण है कि यह मास जगत्पालक भगवान विष्णु को अतिप्रिय है।एक तरह से यह पर्वों का ही मास है। काशी में गंगा के पावन तट पर कार्तिक की कृतिका नक्षत्र से युक्त पूर्णिमा तिथि को दीपों के मास की पूर्णता देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है उस समय सारा शहर, कूप, तालाब एवं गंगा के घाट लाखों लाख दीपों से सजा दिया जाता है, घाटों एवं घरों पर आकाश-दीप नियमित जलाये जाते हैं उस समय आकाश की शोभा देखते ही बनती है लगता है इस अलौकिक शोभा को समस्त देव आकाश के नक्षत्रों में उतरकर निरेख रहे हैं।

देव दीपावली के संदर्भ में कुछ जानने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि देव दीपावली क्या है और गंगा क्या है? द + इव=देव। द अर्थात देना। उत्पन्न करना। काटना। नष्ट करना। पृथक करना। पहाड़।विशाल। इ अर्थात कामदेव यानी अतिसुंदर ।दया। विश्मय।गिरना। प्राप्त करना। व अर्थात बलवान।दृढ़,हवा, वरुण, समुद्र, कल्याण, वस्त्र इन सारी युक्तियों और शक्तियों से सम्पन्न ईश्वरांश का नाम ही देव है।देव अर्थात दिव्य शक्ति सम्पन्न अमर प्राणी। देवता, परमात्मा, इन्द्र, ज्ञानेन्द्रिय, भव्य शरीरवाला व्यक्ति।पारा, तेज पुंज उनकी दीपावली=देव दीपावली।दीप अर्थात चिराग, प्रकाश। किसी कुल का समुन्नायक, श्रेष्ठ पुरुष, शिरोमणि,क्लीं अर्थात पंक्ति, समूह। आशय दिव्य शक्ति सम्पन्न शिरोमणि लोगों के दीपों की अगली ।दीप+अवली = दीपावाली ।देव दीपावली।
उपरोक्त गुणों से युक्त देव दीपावली के असंख्य दीप तीनों लोकों से न्यारी , भगवान भूत भावन बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल पर बसी देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में पतित पावनी गंगा के तट पर अवस्थित घाटों पर अलौकिक ढंग से अपनी अपरिमित अमिट आभा विखेरते हैं जिसे हर कोई आस्तिक या नास्तिक व्यक्ति भी अपनी आँखों में सहेज लेना चाहता है।
गंगा के विषय में पद्मपुराण उद्घोष करता है –

गंगा गंगेति तो ब्रूयात् योजनानां शतैरपि।
मुच्यन्ते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति।।

सौ योजन दूर से भी जो गंगा का नाम उच्चारण करता है उसके सारे पाप विनष्ट हो जाते हैं और अन्त में वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है । गंगा जिसे आज भी भौतिक जगत के लोग चाहे नित्य प्रदूषित कर रहे फिर भी तमाम असाध्य रोगों से लोगों को विमुक्ति प्रदान करती है- *औषधं जाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरि: *
पाप से मुक्ति के संंदर्भ में स्कंध पुराण का यह श्लोक भी द्रष्टव्य है-
अनिच्छयापि संपृष्टो दहनोपि तथा दहेत्।
अनिच्छयापि संस्नाता गंगा पापं तथा दहेत।।
अनिच्छित स्पर्श से जैसे आग जला देती है वैसे ही अनिच्छित रूप से भी गंगा स्नान करने पर गंगा पापों को जला (नाश कर)देती है।
पद्मपुराण तो यहां तक कहता है कि – गंगेति स्मरणादेव क्षयं-याति च पातकम्।


अर्थात गंगा के स्मरण मात्र से ही पापों का क्षय हो जाता है।
धर्मग्रंथों में प्राप्त आख्यानों के अनुसार गंगा ही एक ऐसी नदी है जिसे तीनों (ब्रह्मा विष्णु महेश)का सानिध्य प्राप्त है।
देवभूमि भारत यदि शरीर है तो गंगा उसकी नाड़ी है। सच तो यह है कि गंगा नदी नहीं अपितु नदीश्वरी है ।यही कारण है कि हमारे मनीषियों ने अधिभौतिक, आधिदैविक, और आध्यात्मिक तीनों रूपों में उसे विवेचित एवं लोकप्रतिष्ठित किया है। विश्व के आदि ग्रंथ ऋग्वेद के नदी सूक्त में उद्गत उसके अप्रतिम माहात्म्य के स्वर , रामायण, महाभारत, पुराण, एवं पुरातन -अधुनातन, संस्कृत, हिन्दी वाङ्गमय से लेकर लौकिक ऋचाओं तथा लोकगीतों तक में प्रतिध्वनित हैं। इतिहास,भूगोल,नीति, दर्शन, अध्यात्म संस्कृति तथा आर्य सभ्यता देवपगा जाह्नवी के ममता युक्त आंचल में ही पल बढ़कर लोकोन्मुख हुए हैं। भारत की शायद ही कोई भाषा हो ,शायद ही कोई ऐसा साहित्यकार,संत हो जिसने गंगा की ब्रह्माण्डव्यापिनी महिमा का गुणगान न किया हो। गंगा वास्तव में हम भारतीयों की जीवनधारा है। मोह – मूर्छितों को उद्बुद्ध करनेवाली संजीवनी है।

गंगा तट वासियों की जीवनशैली और जीवन जीने की अपनी एक अलग दृष्टि है। काशीवासी तो तीन सौ पैंसठ दिन में तीन सौ सत्तर दिन से भी ज्यादे पर्वानुभूति करते हैं। ऐसे में भगवान विष्णु को अतिप्रिय कार्तिक मास का कहना ही क्या। इस मास की तिथियों में महिलाओं के लिए सौभाग्यवर्धक पुत्र-पौत्रादि लाभार्थकारक संकष्टी चतुर्थी (करवाचौथ) अहोई अष्टमी व्रत,इस अवसर पर पुत्र की कामना से मथुरा में मध्यरात्रि में राधाकुंड में स्नान का विधान है।रम्भा एकादशी,गोवत्स द्वादशी, अर्थात सवत्सापयस्विनी गोपूजन की तिथि। धन त्रयोदशी लक्ष्मीप्रसन्नार्थ रात्रिपूजन की तिथि। धन्वंतरि जयंती भैषज्यकारों (वैद्यों) के लिए परम पवित्र तिथि, यम के प्रसन्नार्थ मुख्य द्वार पर चतुर्मुखी दीपक जलाने का विधान।नरकचतुर्दशी, हनुमत् जयंती का पर्व । अमावस्या में दीपावली लक्ष्मी कुबेर इन्द्र के पूजन के साथ ही दीपदान तथा निशीथे (कालरात्रि)काली पूजा का महत्वपूर्ण पर्व।
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को काशी के बाहर अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा। द्वितीया तिथि में काशी में अन्नकूट, गोवर्धन पूजा,तथा भाई बहन के जन्म जन्मांतर सहोदर होने के भाव से मथुरा के यमुना में एक साथ स्नान का विधान का पर्व, गणचित्र सहित यम पूजन का पर्व,यमद्वितीया एवं बहन के घर भोजन का पर्व,भ्रातृद्वितीया। जैन धर्मावलंबियों की ज्ञानपंचमी लाभ पंचमी। बिहार सहित समस्त उत्तर भारत में प्रचलित सूर्यषष्ठी (डाला छठ) की तिथि। गोपाष्टमी गो पूजन का पर्व। अक्षय नवमी,रत्नगर्भा कुष्मांडादि दान (गुप्त दान), स्वर्णमयी विष्णु प्रतिमा पूजन, सायंकाल धातृ मूल (आंवला)वृक्ष का पूजन एवं भोजन, ब्राह्मण भोजन तथा अयोध्या एवं मथुरा के परिक्रमा की तिथि।प्रबोधिनी एकादशी ( देवोत्थान एकादशी),इक्षुरसपान मुहुर्त।तुलसी विवाह, एवं चातुर्मास्य व्रत समाप्ति नारायण द्वादशी तिथि, वृंदावन द्वादशी,गरुड़ द्वादशी। वैकुण्ठ चतुर्दशी, महाविष्णु पूजन की पवित्र तिथि, वर्ष का पवित्र दिन, श्री नर्वदेश्वर लिंग (शिव) पर तुलसी अर्पित करने की एकमात्र तिथि और काशी विश्वनाथ के प्रतिष्ठा का पावन दिन। अन्ततः गुरुनानक देव जयंती के साथ मनाया जानेवाला सिक्खों का प्रकाशोत्सव पर्व, कार्तिक पूर्णिमा, सनातनधर्मी भारतीय जन के लिए गंगा में स्नान,दान व पुण्य हेतु सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि योग से युक्त पूर्णिमा तिथि यानी देव दीपावली की प्रतीक्षित तिथि।

इस प्रकार विशिष्ट तिथियों से युक्त कार्तिक मास में दीपदान का भिन्न-भिन्न तिथियों में अलग-अलग महत्व है। हमारी भारतीय परंपरा में छोटे से बड़े पूजन तक में दीप प्रज्वलन का विधान है वहीं कार्तिक में आकाश दीप का महत्व अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इसलिए यह कहने में कोई संकोच नहीं कि यह कार्तिक मास धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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