प्रभु श्रीराम के धाम अवध से वशिष्ठ नगरी तक की यात्रा

स्ववृतांत

वरिष्ठ पत्रकार डा.अजीत मणि त्रिपाठी

अजीत मणि त्रिपाठी का जन्म संवत 2035 विक्रमी, पौष मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि, दिनांक 24 दिसंबर सन् 1978 ई. दिन रविवार को उत्तर प्रदेश के पूर्व में फैजाबाद (वर्तमान अयोध्या) जनपद चिकित्सालय में हुआ था । पिता रूद्रनाथ त्रिपाठी फैजाबाद जिला कारागार में उप कारा पाल पद पर तैनात थे, जब अजीत मणि त्रिपाठी माँ के गर्भ में थे तो पिताजी,माँ कमला त्रिपाठी के साथ रिक्शे पर बैठकर प्रत्येक मंगलवार अयोध्या स्थित प्राचीन हनुमानगढ़ी मंदिर में दर्शन- पूजन करने हेतु जाया करते थे, यह दर्शन-पूजन, माता-पिता के साप्ताहिक दिनचर्या में शामिल था, इस कारण बालक अजीत मणि त्रिपाठी में जन्म से ही धार्मिकता की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। माता-पिता के धार्मिक आचरण के परिणाम स्वरूप वह आज भी विभिन्न धार्मिक,सांस्कृतिक आयोजनों में तन्मयता से संलग्न रहते हैं। साधु-संतों की संगत में रहना और धर्म से संबंधित यज्ञादि एवं सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर सहभागिता करना इनके आदत में शुमार है।

माता-पिता की तीन संतानों में अजीत मणि त्रिपाठी द्वितीय पुत्र हैं। फैजाबाद से पिताजी का तबादला गोंडा जनपद में हो गया था, और यहीं पर छोटे भाई का जन्म हुआ जो अजीत से तीन वर्ष छोटे थे। अजीत के पिताजी छः भाई थे जिसमें से सबसे बड़े सुरेश मणि त्रिपाठी थे, जिनके कोई संतान नहीं थी, बचपन में अजीत काफी सौम्य व आकर्षक थे इसी से मोहित होकर चार वर्ष की अवस्था में ही बड़े पिता सुरेश मणि त्रिपाठी नें इनके पिता रूद्रनाथ त्रिपाठी से इन्हें मांग लिया और अजीत गुरु वशिष्ठ की धरती बस्ती जनपद के लालगंज थाना अंतर्गत बनकटी विकास खंड के कैथौरा गांव में आ गए, जहाँ पर इनका लालन-पालन बड़ी माता प्राणपति त्रिपाठी व सुरेश त्रिपाठी करने लगे।

गाँव में संयुक्त परिवार एवं एक दर्जन चचेरे भाई-बहनों की वजह से बड़े पिता सुरेश त्रिपाठी को बालक अजीत को स्वीकार करने में समस्या होने लगा, उन्हें डर था कि उनके इस निर्णय की वजह से कहीं संयुक्त परिवार में बगावत न हो जाए और परिवार विखंडित न हो जाए। कुछ ऐसी परिस्थिति बन गई कि वह न तो बालक अजीत को स्वीकार कर सकते थे और न ही उनके पिता के पास भेज सकते थे। पिता रुद्रनाथ त्रिपाठी की स्थिति ऐसी थी कि भईया की खुशी मेरे पुत्र से है तो मैं अपने पुत्र को उनसे वापस कैसे मांगूं, भले ही उनके पुत्र को घोर कष्टों का सामना क्यों न करना पड़े, ऐसी परिस्थितियां बन गई कि अजीत की स्थिति ईश्वर के हाथ हो गई , क्योंकि होनी को कुछ और ही मंजूर था और अजीत का बचपन गाँव में ही व्यतीत होना था।

गाँव में रहते हुए भी इनमें बचपन से ही नेतृत्व करने की क्षमता कूट-कूटकर भरी हुई थी और बेहद पिछड़े कैथौरा ग्राम में उन्होंने पाँचवीं कक्षा में पढ़ते हुए नौ वर्षों तक लगातार दुर्गा पूजा समारोह का आयोजन करवाया और समिति के अध्यक्ष वह स्वयं ही रहे एवं प्रथम कुछ वर्षो तक वह खुद ही मूर्तियों का निर्माण करते थे, बाद में मूर्तियां खरीद कर आने लगी । इसके साथ-साथ उन्होंने गांव के तमाम हमउम्र बच्चों को इकट्ठा कर रंगमंचीय विधा में रासलीला आयोजित करना प्रारम्भ कर दिया ,जिसका मंचन दुर्गा पूजा समारोह के समय होता था ।

गाँव के बाद वह लगातार दस वर्षों तक बनकटी बाजार में आयोजित होने वाली रामलीला समिति एवं रामकथा समिति के अध्यक्ष बने रहे, बनकटी बाजार में सन् 1970 में दुर्गापूजा आयोजित करने का निर्णय बड़े पिता सुरेश त्रिपाठी द्वारा लिया गया था और कमेटी के अध्यक्ष भी वही थे। इनके बाद यह दायित्व अजीत मणि त्रिपाठी नें सम्हाला और बिना इनके सहयोग के उक्त कस्बे में किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक आयोजन सम्पन्न नहीं होता है।

इनकी प्राथमिक शिक्षा जनता शिशु शिक्षा निकेतन बनकटी में हुई, इसके पश्चात कक्षा छः से इंटरमीडिएट तक की शिक्षा जनता इंटर कालेज बनकटी में पूर्ण करने के पश्चात, स्नातक की पढ़ाई अंबिका प्रताप नारायण स्नातकोत्तर महाविद्यालय बस्ती में करने के साथ-साथ कंप्यूटर साफ्टवेयर में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के पश्चात, बड़े पिताजी के सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई हेतु लखनऊ विश्वविद्यालय में नामांकन कराया, वहां पर उन्होंने मध्यकालीन इतिहास विषय में स्नातकोत्तर एवं पत्रकारिता में मास्टर आफ जर्नलिज्म की शिक्षा प्राप्त किया ।
लखनऊ विश्वविद्यालय में वह चंद्रशेखर आजाद छात्रावास (बटलर) के कक्ष संख्या 67 में रहते थे, इसके पूर्व उन्होंने लगभग डेढ़ साल तक इंदिरा नगर एवं आर्य समाज मंदिर डालीगंज तथा जैन मंदिर डालीगंज लखनऊ में भी निवास किया, इस कारण उनके ऊपर विभिन्न संस्कृतियों एवं धर्म की भी छाप है।

लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के बाद उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से 87 प्रतिशत अंकों के साथ हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त किया ।इसके बाद उन्होंने डा.राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से पंडित द्विजेंद्र नाथ मिश्र ” निर्गुण ” के कथा साहित्य का शास्त्रीय विश्लेषण शीर्षक पर पीएचडी उपाधि डा.महेंद्रनाथ पांडेय के निर्देशन में प्राप्त किया । मेधावी अजीत की एक खासियत यह थी कि वह कभी किसी कक्षा में कभी अनुत्तीर्ण नहीं हुए।

अध्ययन करने के साथ-साथ अजीत मणि त्रिपाठी विभिन्न समाचार-पत्रों के साथ दैनिक जागरण समाचार पत्र में एक कुशल पत्रकार के रूप में लिखने लगे और उनके नाम से कई खोजी खबरें राष्ट्रीय फलक पर प्रकाशित हुईं और उन खोजी खबरों पर कई शोध-पत्र प्रकाशित हुए। साथ ही साथ इनके द्वारा लिखे गए कई लेख देश के विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए हैं।

इनका विवाह 23 अप्रैल सन् 2000 ई.को संतकबीर नगर जनपद के निवासी एवं लखनऊ जनपद के मोहनलालगंज थाने में प्रभारी निरीक्षक पद पर तैनात श्री तिलकदेव पांडेय की द्वितीय पुत्री नीलम पांडेय से हुआ। कुछ ही दिनों में इनके तीन संताने तान्या मणि त्रिपाठी,आदित्या मणि त्रिपाठी एवं आराध्या मणि त्रिपाठी उत्पन्न हुईं ।

वर्ष 2006 में इनको उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बी.एल. जोशी की संस्तुति पर “युवा पत्रकार गौरव सम्मान” दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अरुण कुमार एवं पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री रामकृष्ण द्विवेदी द्वारा प्रदान किया गया।

विषम परिस्थितियों में संघर्ष करते हुए उन्होंने वर्ष 2011 में पंडित सुरेश मणि त्रिपाठी स्मारक शिक्षा सेवा समिति की स्थापना कर अपने कर्मस्थली पर वर्ष 2014 की अक्षय तृतीया को शैक्षिक संस्थान रुद्र कमला एकेडमी एवं एसएमटी विद्यापीठ कैथौरा की स्थापना किया।

स्वच्छंद विचारों वाले अजीत मणि त्रिपाठी नें फरवरी 2015 में अजीत पार्थ न्यूज के नाम से स्वयं का समाचार पत्र भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय से संबंधित रजिस्ट्रार न्यूजपेपर आफ इंडिया से पंजीकृत करवाया । जो वर्तमान समय में अत्यधिक लोगों द्वारा पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र है। उक्त समाचारपत्र नें कोरोना काल 2020 के दौरान दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल द्वारा छः बार स्वर्ण पदक विजेता का पुरस्कार हासिल किया।

वर्ष 2002 में पीसीएस (जे) की साक्षात्कार परीक्षा में परिवार में कोई सिविल सेवा में न होने के गैर जिम्मेदाराना सवाल पर असफल हो गए। इसके बाद 21 जनवरी 2008 को उत्तर प्रदेश सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा संचालित लघु औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में उनकी कंप्यूटर विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति हो गई ।

इनके जीवन में रविवार दिन का बहुत ही महत्व है क्योंकि रविवार को ही उनके माता-पिता का जन्म, रविवार को ही स्वयं का जन्म तथा रविवार के ही दिन इनका विवाह हुआ है एवं इनकी पत्नी का जन्म महारविवार को तथा दो पुत्रियों क्रमशः प्रथम एवं द्वितीय का जन्म रविवार को ही हुआ है ,साथ ही जीवन के कई महत्वपूर्ण कार्य रविवार को ही संपन्न हुए हैं।

विवाह के चार वर्ष बाद ही बड़े पिता पंडित सुरेश मणि त्रिपाठी जो कि सहायक विकास अधिकारी पंचायत के पद से अवकाश प्राप्त थे,14 फरवरी सन् 2004 को उनका देहावसान हो गया। तत्पश्चात काफी संघर्ष करते हुए उन्होंने स्वयं को स्थापित किया और कुछ नया कर गुजरने की आशा में वर्ष 2001 से 2005 तक उन्होंने बस्ती जनपद न्यायालय में कर रहे अपनी वकालत की प्रैक्टिस के साथ ओथ तथा सर्वे कमिश्नर का पद छोड़ दिया ।

वर्ष 2007 में वह ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर चुनाव द्वारा निर्वाचित हुए। तत्पश्चात 2011 में काशी के पराड़कर भवन में अपने आदर्श युग तुलसी डा.उमाशंकर चतुर्वेदी कंचन की सहमति पर महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के बस्ती जनपद के अध्यक्ष मनोनीत किए गए। डा. उमाशंकर चतुर्वेदी कंचन जी से वर्ष 2010 में सम्पर्क करवाने का श्रेय, देश के वरिष्ठ सम्पादकों में शुमार एवं चित्रकारी विधा के महारथी, हरदिल अजीज लियोनार्डो. उमाशंकर सिंह जी को है।

8 जनवरी सन 2016 को बड़ी माता श्रीमती प्राणपति त्रिपाठी का भी देहावसान हो गया, इनके निधन के बाद अजीत मणि त्रिपाठी के ऊपर जिम्मेदारियों का पहाड़ टूट पड़ा,फिर भी हिम्मत न हारते हुए उन्होंने कई रचनात्मक कार्य किए जिसमें बनकटी उपनगर में आश्रम रूद्र कमला का निर्माण प्रमुख है ।
तमाम झंझावतों से जूझने के बाद भी इनकी रुचि विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में जुड़ी रहती हैं, जिसके फलस्वरूप इनके कार्यों को देखते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों के भारत के निर्माण में संकल्पित संस्था राष्ट्र सृजन अभियान द्वारा इनको बस्ती जनपद का जिला अध्यक्ष मनोनीत किया गया है ।

अजीत मणि त्रिपाठी को उनके द्वारा किए गए विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यो की वजह से दैनिक जागरण के तत्कालीन बरेली एवं गोरखपुर संपादक एवं पत्रकारिता के मूर्धन्य विद्वान चंद्रकांत त्रिपाठी द्वारा आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान, विश्व साहित्य संगम द्वारा कबीर सम्मान ,विशिष्ट पत्रकारिता के लिए एक्सीलेंट सर्विसेज एवार्ड सहित विभिन्न शैक्षिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा समय समय पर पुरस्कारों तथा सम्मानों से नवाजा गया है।

अजीत मणि त्रिपाठी के शोधग्रन्थ द्विजेंद्र नाथ मिश्र ” निर्गुण” के कथा साहित्य का शास्त्रीय विश्लेषण के अतिरिक्त दो अन्य पुस्तकें नागा बाबा वासुदेव दास जीवन परिचय व शेर शायरी व कविताओं का संग्रह मनोद्गार प्रकाशनाधीन हैं। इसके साथ ही वह नीलम मणि सेवा न्यास तथा अजीत पार्थ न्यूज सेवा न्यास के मुख्य ट्रस्टी के पद पर कार्य करते हुए विभिन्न सामाजिक कार्य कर रहे हैं ।

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